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akhilesh yadav kanshiram statue in raebareli mayawati bsp swami prasad maurya – India Hindi News

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उत्तर प्रदेश में बीते 4 चुनावों से लगातार हार झेल रही समाजवादी पार्टी ने अब वोट बैंक का गणित नए सिरे से साधना शुरू कर दिया है। अब तक पिछड़ी बिरादरियों की गोलबंदी करने वाले अखिलेश यादव ने दलित वोटों पर भी फोकस बढ़ा दिया है। पिछले कुछ सालों में उन्होंने स्वामी प्रसाद मौर्य, रामअचल राजभर, दारा सिंह चौहान जैसे बसपा के दिग्गज रहे पिछड़े और दलित नेताओं को पार्टी में शामिल किया है। अब वह मायावती के गुरु रहे कांशीराम पर भी नजर गड़ाए हुए हैं। अब तक अखिलेश यादव को लेकर एक वर्ग कहता था कि वह ओबीसी की राजनीति तो करते हैं, लेकिन दलितों को नहीं साध पा रहे।

माना जा रहा है कि इसी धारणा को बदलने के लिए अखिलेश यादव अब सक्रिय हैं। इसी कड़ी में आज वह रायबरेली के महामायानगर स्थित मान्यवर कांशीराम महाविद्यालय जा रहे हैं। यहां अखिलेश यादव दलित नेता रहे कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करेंगे। कभी कांशीराम और मुलायम सिंह यादव के बीच अदावत हुआ करती थी, लेकिन अब आंबेडकरवादियों और लोहियावादियों को साथ लाने की बात अखिलेश करते हैं। ऐसे में उनका कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करना बदलती राजनीति का संकेत है। उत्तर प्रदेश में दलित आबादी करीब 20 फीसदी मानी जाती है। 

बदल गई सपा? माया के गुरु कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करेंगे अखिलेश

साफ है कि यदि कोई चुनावी मैच बराबरी पर फंस रहा हो तो दलित वोट बैंक ही हार और जीत का फैसला कर सकता है। शायद अखिलेश भी मानते हैं कि 2022 के चुनाव में उनके पास यही एक कमी रह गई थी वरना वह भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकते थे। अखिलेश यादव ने फिलहाल मायावती के करीबी रहे स्वामी प्रसाद मौर्य को ही दलित समाज में पैठ के लिए सूत्रधार बनाया है। रायबरेली के आयोजन में भी स्वामी प्रसाद मौर्य का ही योगदान है। वह जिले की ऊंचाहार सीट से विधायक रहे हैं। उनके बेटे उत्कृष्ट मौर्य भी यहां से चुनाव लड़ चुके हैं। जिले में अच्छी खासी दलित आबादी है, जिनके बीच स्वामी प्रसाद मौर्य का हमेशा से जनाधार रहा है।

स्वामी की अगुवाई में हो रहा रायबरेली का आयोजन

सपा सूत्रों का कहना है कि रायबरेली में अखिलेश यादव के अलावा स्वामी प्रसाद मौर्य मुख्य वक्त होंगे। दोनों नेता अपने भाषणों में यादव, ओबीसी, दलित एकता पर जोर दे सकते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने मायावती के साथ गठबंधन किया था। लेकिन अब अखिलेश यादव बीएसपी संग गठजोड़ से ज्यादा वैचारिक जमीन तैयार कर दलितों तो साथ लाने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। अखिलेश कई बार दोहरा चुके हैं कि बीएसपी अब कांशीराम के आदर्शों पर नहीं चल रही है। अब समय है कि हम 1993 से पहले के दौर में आएं और इतिहास दोहरा दें।

आज देश पर राज कर रहे होते… मायावती का छलका दर्द

कांशीराम की प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम को लेकर बसपा सतर्क दिख रही है। मायावती ने रविवार को हुई बसपा की मीटिंग में सपा पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इन लोगों कि दलित विरोधी सोच के चलते ही गेस्ट हाउस कांड हुआ था और सपा एवं बसपा का ऐतिहासिक गठबंधन टूट गया था। मायावती ने कहा कि यदि इनका दलित विरोधी चरित्र न होता तो आज हम देश पर राज कर रहे होते।

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